उत्तर प्रदेश, बुलंदशहर (डेस्क) : जनपद बुलंदशहर के कस्बा गुलावठी में 12 सितंबर सन 1930 गुलावठी के लिए ऐतिहासिक दिन है। यह दिन शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। 12 सितंबर 1930 को पुलिस की गोलियों से शहीद हुए नौ देशभक्तों की याद में गुलावठी में शहीद स्मारक स्थापित है। शहीद स्मारक को गुलावठी का गौरव तथा प्रेरणास्रोत माना जाता है। शहीद स्मारक पर लिखी ये पंक्तियां देशभक्ति को प्रेरणा देती हैं, शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा। सन 1930 में आजादी का आंदोलन चरम पर था। 12 सितंबर को गुलावठी के बड़ा महादेव मंदिर परिसर में अंग्रेजी हुकूमत के विरूद्ध सभा आहुत की गई। सभा न होने देने के लिए आमादा जिला प्रशासन ने गुलावठी में एक ऐसे थानेदार को नियुक्त किया था जोकि स्वतंत्रता आंदोलनकारियों पर जुल्म ढाने के लिए कुख्यात था। सभास्थल पर लोगों को जाने से रोकने के लिए पुलिस ने कई हथकंडेे अपनाए, लेकिन सभास्थल पर भारी भीड़ एकत्र हुई। इससे बौखलाए थानेदार ने सभा में भीड़ पर घोड़ा चढ़ा दिया, जिससे गुलावठी में देशभक्तों की स्मृति में बना शहीद स्मारक का दृश्याओं में भगदड़ मच गई और कई लोग घायल हो गए। बुजुर्ग लोग बताते हैं कि थानेदार की इस करतूत से ग्राम भटौना निवासी भगवान सिंह इतने उत्तेजित हुए कि उन्होंने लाठी प्रहार कर थानेदार को मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद अन्य पुलिसकर्मी भाग खड़े हुए लेकिन घटनास्थल से लौट रहे लोगों को घेरकर पुलिस ने मुख्य मार्ग के तिराहे पर बेरहमी से लाठियां व डंडो से पीटा जिसमें नौ देशभक्त शहीद हो गए। शहीदों में भगवान सिंह के अलावा भरत सिंह, मुन्नालाल, छुट्टन लाल, कन्हैयालाल, चंदूलाल, जहारिया, राम एवं नवल सिंह शामिल थे। पुलिस ने करीब चार सौ लोगों को गिरफ्तार कर लिया। जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री बाबू बनारसीदास भी थे। इनमें से 48 लोगों पर मुकदमा चलाया गया। शहीदों की याद में सन 1948 में स्मारक का निर्माण कराया गया है। स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में इन देशभक्तों की गाथा गुलावठी कांड के नाम से जानी जाती है। हर साल 12 सितंबर को गुलावठी में इन शहीदों की याद में शहीद दिवस मनाया जाता है। पूर्व मुख्यमंत्री एवं स्वतंत्रता सेनानी बाबू बनारसीदास एवं मगनलाल अग्रवाल का भी आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान रहा।
गुलावठी का ऐतिहासिक शहीद दिवस: 12 सितंबर 1930 की अमर गाथा